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अ॒र्वाची॑ सुभगे भव॒ सीते॒ वन्दा॑महे त्वा। यथा॑ नः सु॒भगास॑सि॒ यथा॑ नः सु॒फलास॑सि ॥६॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

arvācī subhage bhava sīte vandāmahe tvā | yathā naḥ subhagāsasi yathā naḥ suphalāsasi ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒र्वाची॑। सु॒ऽभ॒गे॒। भ॒व॒। सीते॑। वन्दा॑महे। त्वा॒। यथा॑। नः॒। सु॒ऽभगा॑। अस॑सि। यथा॑। नः॒। सु॒ऽफला॑। अस॑सि ॥६॥

ऋग्वेद » मण्डल:4» सूक्त:57» मन्त्र:6 | अष्टक:3» अध्याय:8» वर्ग:9» मन्त्र:6 | मण्डल:4» अनुवाक:5» मन्त्र:6


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उसी विषय को अगले मन्त्र में कहते हैं ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुभगे) उत्तम प्रकार ऐश्वर्य्य की बढ़ानेवाली (यथा) जैसे (अर्वाची) नीचे को चलनेवाली (सीते) हल आदि के खींचनेवाले अवयव लोहे से बनाई गयी सीता है, वैसे आप (भव) हूजिये और जैसे भूमि (सुभगा) सौभाग्य से युक्त है वैसे तू (नः) हम लोगों की (अससि) है और (यथा) जैसे भूमि (सुफला) उत्तम फलों से युक्त है, वैसे तू (नः) हम लोगों की (अससि) है, इससे हम लोग (त्वा) तेरी (वन्दामहे) कामना करते हैं ॥६॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमा और वाचकलुप्तोपमालङ्कार हैं। हे मनुष्यो ! जैसे उत्तम प्रकार सम्पादित खेत की धरती उत्तम अन्नों को उत्पन्न करती है, वैसे ही ब्रह्मचर्य्य से विद्या को प्राप्त हुआ जन उत्तम सन्तानों को उत्पन्न करता है और जैसे भूमि का राज्य ऐश्वर्य्यकारक है, वैसे परस्पर प्रसन्न स्त्री और पुरुष बड़े ऐश्वर्य्यवाले होते हैं ॥६॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

हे सुभगे ! यथाऽर्वाची सीते सीतास्ति तथा त्वं भव यथा भूमिः सुभगास्ति तथा त्वं नोऽससि यथा भूमिः सुफलास्ति तथा त्वं नोऽससि, अतो वयं त्वा वन्दामहे ॥६॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अर्वाची) याऽर्वागधोऽञ्चति (सुभगे) सुष्ठ्वैश्वर्य्यवर्द्धिके (भव) (सीते) हलादिकर्षणावयवायोनिर्मिता (वन्दामहे) कामयामहे (त्वा) त्वाम् (यथा) (नः) अस्माकम् (सुभगा) सौभाग्ययुक्ता (अससि) असि। अत्र बहुलं छन्दसीति शपो लुगभावः। (यथा) (नः) अस्माकम् (सुफला) शोभनानि फलानि यस्यां सा (अससि) ॥६॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमावाचकलुप्तोपमालङ्कारौ। हे मनुष्या ! यथा सुष्ठु सम्पादिता क्षेत्रभूमिरुत्तमानि शस्यानि जनयति तथैव ब्रह्मचर्य्येण प्राप्तविद्यः सुसन्तानान् सूते यथा भूमिराज्यमैश्वर्य्यकरं वर्त्तते तथा परस्परं प्रीतौ स्त्रीपुरुषौ महैश्वर्य्यौ भवतः ॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमावाचकलुप्तोपमालंकार आहेत. हे माणसांनो ! जशी उत्तम प्रकारे संपादित केलेली शेतजमीन उत्तम अन्न उत्पन्न करते, तसेच ब्रह्मचर्याने विद्या प्राप्त केलेले लोक उत्तम प्रकारच्या संतानांना निर्माण करतात. जशी भूमीच राज्याला ऐश्वर्ययुक्त करते, तसे परस्पर प्रसन्न स्त्री - पुरुष अत्यंत ऐश्वर्यवान होतात. ॥ ६ ॥